Thursday, December 1, 2016

अपना भी ज़माना होगा अब


है उम्मीदें दामन में ,दर्द का न अब कोई फ़साना होगा
न होगा इतेफाक ही कोई ,न अब कोई बहाना होगा 
इम्तेहान हो कोई भी , तयार हैं हम दिल -ओ -जान से 
मुद्दतों बाद अपना भी ,अब कोई ज़माना होगा !! 


है अजनबी शहर तो क्या ,हर दिल ही अपनी मंजिल है 
भीड़ में खोते नहीं , ऐसे दीवानों की ये महफ़िल है 
है सफ़र पे आज अपने साथ फिर से ख़ुशी 
गुलशन अपने यारों का ,न अब कभी वीराना होगा !!

No comments:

Post a Comment

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...