Sunday, January 26, 2014

नज़्म कहते हैं किसे और ग़ज़ल कहाँ पर है

नज़्म कहते हैं किसे और ग़ज़ल कहाँ पर है
कौन सी बात दिल में और क्या जुबाँ पर है

बंदगी ,बेकली ,दर- ब-दर का फिरना
जाने इलज़ाम क्या क्या मेरे गिरेबाँ पर है

क्यों बदलने सी लगी हैं शहर की नज़रें
कल तलक थी ज़मीं पर आज आसमाँ पर है

आज फिर मुंसिफ़ का फैसला होना है
आज फिर अपनी नज़र आपके बयाँ पर है

जाने है यकीं किसको "नील" आँखों का और
जाने किसको न यकीं तेरे दास्ताँ पर है

2 comments:

  1. वाह ... कमाल के शेर बन पड़े हैं ... बहुत उम्दा ..

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  2. bahut dhanyvaad mayank daa
    aabhaar digambar ji

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