Saturday, April 14, 2012

ये कैसी है कोशिश ,जो नतीजे नहीं मिलते


सूझती है मंजिलें ,मंगर रस्ते नहीं मिलते 
मतलबी शहर में अब, फ़रिश्ते नहीं मिलते 

सब को पसंद है  शोहरत की खुशबू मगर 
इंसानियत के अब कोई रिश्ते नहीं मिलते 

हर तरफ मजहबी रंगों की ही खुमारी है
बच्चों के दिल के वास्ते किस्से नहीं मिलते 

पूछो तो यहाँ महफ़िल में बस शोर होते हैं 
मगर गुरबत्त कैसे मिटे,कोई नुक्ते  नहीं मिलते 

कब से सिर्फ जुगार की मेहेरबानियाँ है यहाँ 
ये कैसी है कोशिश ,जो नतीजे नहीं मिलते 





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