Sunday, March 18, 2012

गर नशा उनका है तो फिर मैं शराबी हूँ

गर नशा उनका है तो फिर मैं शराबी हूँ
मुहब्बत के समंदर का सच्चा जहाजी हूँ  

अगर तुम ज़ुल्म का ये शरियत चलाओगे 
तो मैं भी हूँ आज़ाद,मैं भी एक बागी हूँ 

तुम फूलों से जुल्फों को सजा लेना मगर
ये जान लो सनम मैं उनका ही डाली हूँ  

सब मौत जीते हैं ,हमने ज़िन्दगी जी है 
क्या इसलिए आज उनका अपराधी हूँ 

हमने किसी के लिए पूरी चाहत लुटा दी  
मगर लोग कहते हैं मैं हाज़िर जवाबी हूँ 

दैर -ओ -हरम जाने की ख्वाइश नहीं  रखता
मैं तो बस सुर लय ताल का एक नमाज़ी हूँ











No comments:

Post a Comment

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...