Thursday, February 2, 2012

बेखुदी  में  हम मिट गए  ,क्या यही अंजाम है
है नशा तो उनकी अदा का ,लेकिन  हमारा जाम है

जिस किताब का उसने मोल किया बड़े नाज़ से 
उसके हर पन्ने पे  देखो ,बस उन्ही का नाम है

भला किससे करता हाल-ए-दिल अपना बयान 
क़त्ल होना अब आशिकों का इस शहर में आम है 

दर्द-ए-दिल को उनका तोहफा समझ कर रखा 
फिर क्यूँ उनसे नाता अपना,आज यूँ बदनाम है 

ये गम हमें हरगिज़  नहीं कि वो हमें भूले सनम 
पर ये गम है  नील कि मुहब्बत ही मेरा इलज़ाम है 

यूँ तो उन्होंने हमको रुखसत  कब का कर दिया
हमारी नगमो का मगर रूह से उन्हें सलाम है 

आशिकों से उनकी मंजिल न पूछना तुम कभी
हर दिल का दरवाज़ा ही उनका सही मुकाम है 

1 comment:

  1. जिस किताब का उसने मोल किया बड़े नाज़ से
    उसके हर पन्ने पे देखो ,बस उन्ही का नाम है
    आशिकों से उनकी मंजिल न पूछना तुम कभी
    हर दिल का दरवाज़ा ही उनका सही मुकाम है
    ..bahut sundar...

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