Saturday, June 25, 2011

हर सांस में आरज़ू जीने की दफ़न है ...

हम  तो  उस शहर  में  हैं  जहाँ  गम  ही  गम  है
पर  निशार   हर  ख़ुशी  पर   हमारी  हर  नज़्म   है
उसे  ही  सुनकर  हम  भी  खुश  हो  जाया  करते  हैं  ...
लोग  अब कहते    हैं  की   बन्दे   में  कितना   दम   है  ...

जब  रात  के  अँधेरे  में  सारा  जहाँ  सोता  है ...
हम  गम  में  डूबकर  ही  लिखते   कोई   ग़ज़ल  हैं ...
उसे  दूर  महफिलों  में  कोई  सुना  करता  है .......
हम  तो  खुश  हैं  इसी   में  ,की  गुलज़ार  वो  गुलशन  है ...

अब  ज़िन्दगी  बेपरवाह   कट  जाएगी  हमारी ...
हर  सांस   में  आरज़ू  जीने  की  दफ़न  है ...
बेहिसाब  गम  की  बारिश  करना  मेरे  प्याले  में ...
हम  छलकायेंगे   खजाना   ख़ुशी  का ,जब  तक  दम  में  दम  है ...

हम  तो  उस  शहर  में  हैं  जहाँ  गम  ही  गम  है ...

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मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...