Friday, May 13, 2011

कौन तेरा मार्ग रोके?



पश्चिम से 
उन्मुक्त लहर आई है ,
खजूर के वो पेड़ के
मधुर मिलन की खबर लायी है!

तूफ़ान ने तो दो
पेड़ो को मिला दिया !
जो हम नहीं कर सकते
उन्होंने सिखा दिया !

प्रेम भी तो तूफ़ान है
सदभावनाओं की खान है
जो
अन्दर से भी
पाताल के बहते
निर्झर के जैसा है!

और
शक्ति अपार उस
तांडव जट्टाधारी से
प्रकट हो तो वो
एक प्रलय के जैसा है !

जो हुआ ऐसा अंत
तब
कौन ये विधान रोके?
कौन ये तूफ़ान रोके?

वो डूबता सूरज
भी आ गया है
अब सवार हो
अपने श्वेत घोड़े पर !

इस अनोखे दृश्य के
होंगे हम मनुहारी
साक्षी होगा स्वयं
इस काल का पहर !

गगन और धरा
हो जायेंगे संग संग
तब
कौन ये साकार रोके
कौन ये एकाकार रोके ?

क्षितिज समेटे हैं
कुछ लाल ,पीले
वैगनी ,हरे रंगों को
जो सूरज और वर्षा के
उत्त्साह्पूर्ण नृत्य
और धुल -कणों के
पुष्प वर्षा से निर्मित है


धरा -नभ के मिलन हेतु वो
एक सेज सजाते हैं क्षितिज पर
और बादलों के सफ़ेद टूकड़ों से
आलोकित है

इतने विहंगम दृश्यों
का जब अवलोकन है
तब
कौन ये बहार रोके?
कौन ये मनुहार रोके?

जा ,
गगन और धरा आज एक हो जायेंगे
इन्द्रधनुषी झूले पर
बादलों के आवारण में ,
आज,
तू भी बढ़
अपने मंजिल पर अब !

तुझे बढ़ना है अपने
लक्ष्य के आरोहन में
साहस का रंग संग तेरे है जब !

अंगद की अडिगता का
तुझे जब भान है
तब
कौन ये उद्घोष रोके?
कौन ये जोश रोके?

वो
तुझे ढूंढ़ लेगी
तेरे आहट को सुन लेगी
ज्यों
तेरा और उसका मिलन
इसी धरा पर ही होना है !

खोये है तुने
सतरंगी सपने को
अब अपने प्रियवर को
तुझको न खोना है

अब बढ़ते जा अनवरत
उस दिव्य प्रकाश के ही ओर!
इस आशा के संग कि
जग का नहीं कोई छोर!
सारी दुआएं हैं उसकी तेरे जब संग
तब
कौन तेरा मार्ग रोके?
कौन तेरा भाग रोके?

No comments:

Post a Comment

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब  आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो चलिए ,दिल के गलियारे में ...