Wednesday, May 11, 2011

रौशनी की ओर!

रौशनी की ओर 
बढ़ते गया
वो अनवरत !

और 
मिलती गई 
उसे मंजिल !

और 
अपने होने का 
स्वाभिमान ..

दूर कहीं हो जाता
उस रौशनी से 
विपरीत दिशा में!

तो अपने साए
से भी जीत न 
पाता इस जीवन के भाग दौड़ में ...

निशांत 

1 comment:

  1. badhte kadmon ke aage kitna bhi andhera ho raushni aati hi hai.. aur yahi khuddari banti hai

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